दर्द


वो एक शहर था, वो एक गली थी,
जिसमें  गुम मेरी हंसी थी,
इधर उधर ढूंढा बहुत, मगर न मिलना था न मिली वो
परेशां होकर, एक खाका खींचा,
और लबों पे चस्पा कर लिया,
लरजते लबों को सबने देखा,
दिल के दर्द को दबाते हुए लरजे थे ये न कोई देख पाया।

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