चाय

वो बरसती शाम और तेरा कंपकंपाते हाथो से चाय लाना
फिर थोड़ा झिझकते हुए लरज़ते होठों
से गिलास लगाना
और उसकी ओट से चोरी चोरी मुझसे
ऑंखे लड़ाना
मै देखू तो सिहर कर सिमट जाना
अब भी याद है मुझे
जाने कहाँ खो गये हैं
पल वो सुकूं के

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